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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-12



    अध्याय-4
    अगला दिन
    भाग-2
    
    ★★★

    हिना और आर्य दोपहर का खाना खा चुके थे। मौसम अभी भी वैसा ही था जैसा सुबह बना हुआ था। हल्की बर्फबारी हो रही थी। हिना और आर्य खाना खाने के बाद आश्रम में ही टहल रहे थे।

    हिना टहलती हुई बोली “दोपहर के खाने के बाद आगे का काफी वक्त खाली बच जाता है। यहां आश्रम में अब तकरीबन 6:00 बजे तक और कोई काम नहीं होता। इस बीच में आश्रम के छात्र या तो आराम करते हैं, या आश्रम में ही इधर-उधर टहलते हैं। ‌ फिर शाम को आचार्य के सिखाने की बारी होती है। आचार्य रात के 9:00 बजे तक सिखाते हैं। ‌ फिर खाना और बाद में सो जाना।”

    आर्य भी हिना के साथ साथ चल रहा था “मतलब आश्रम की दिनचर्या सिर्फ इन्हीं तीन से चार कामों के बीच सीमित रहती है। इसके अलावा और कुछ भी नहीं।”

    “फिलहाल तो तुम यही कह सकते हो। वैसे त्योहारों के समय हमारे आश्रम में दिनचर्या बदलती है। जैसे अभी कुछ ही हफ्तों में नया साल आने वाला है तो एक बड़ा समारोह रखा जाएगा। ऐसे ही जब कोई और त्योहार आता है तो अलग-अलग समारोह रखे जाते हैं। कभी कबार प्रतियोगिताएं भी होती है।”

    “तुम्हें लगता है आश्रम में रहने वाले के लिए अपनी जिंदगी में इतना कुछ काफी है। मतलब हर इंसान के कुछ सपने होते हैं, कुछ सपने और कुछ ख्वाब। क्या आश्रम की दुनिया में उनकी भी जगह है?”

    हिना सोचते हुए बोली “इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। यहां आश्रम में तुम्हें ज्यादातर 20 साल से कम उम्र वाले ही विधार्थी देखने को मिलेंगे। अगर कोई ज्यादा उम्र वाला यहां होता, तो इस सवाल का जवाब मिल जाता। सपने अक्सर 20 साल की उम्र के बाद ही देखे जाते हैं। उससे पहले तो सब सामान्य जिंदगी ही होती है, जो चाहे किसी भी जगह पर क्यों ना हो, किसी न किसी तरीके से कट जाती है।”

    हिना और आर्य दोनों चलते हुए आश्रम में बने एक पीपल के पेड़ के नीचे आ गए थे। वहां पीपल के पेड़ के नीचे बैठने के लिए चबूतरे जैसी जगह बनी हुई थी। दोनों ही उस पर बैठ गए।

    आर्य ने बैठते हुए कहा “तुम्हारा भाई। आयुध। उसका क्या हुआ? क्या तुमने अभी तक आश्रम के आचार्यों से बात की।”

    “नहीं अभी तो नहीं। तुम्हें दिख रहा होगा सुबह से लेकर अब तक वक्त ही नहीं मिला। मै या तो अब थोड़ी देर में जाकर उनसे बात करूंगी, या फिर रात को खाना खाने के बाद।”

    “तुम्हें लगता है आश्रम के आचार्य इस बात के लिए मान जाएंगे। ‌ वह आयुध को आश्रम से बाहर जाने देंगे।”

    हिना ने ना में सर हिला दिया “संभावना तो नहीं है। वह अच्छे से जानते हैं बाहर कौन सा खतरा हम सब का इंतजार कर रहा है। कल रात तुमने देखा ही होगा कैसे लाल आंखों वाली परछाइयां हमारे पीछे आ गई थी। यहां आश्रम से बाहर वह सुरक्षित नहीं रह पाएगा।”

    “लेकिन अगर उसको जाने ना दिया गया तो वह फिर से आश्रम से बाहर जाने की कोशिश करेगा। इस बार तो हमें उसका पता लग गया था, क्या पता अगली बार ऐसा ना हो। हमें उसके जाने के बारे में पता ना चले।”

    हिना के चेहरे पर मायूसी आ गई “मैं भी इसे लेकर गंभीर हूं। समझ में नहीं आ रहा उसके बारे में क्या फैसला किया जाए। मैं उसे यहां आश्रम में रहने के लिए मजबूर भी नहीं कर सकती। मैं तो यही उम्मीद कर रही हूं कि जब आचार्य से बात करूंगी, तो वह जरूर इसका अच्छा हल निकालेंगे। ऐसा हल जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।”

    आर्य कहावत सुनकर हंसने लगा। मगर तभी कहावतें से उसे वह शख्स याद आया जिसने उसके बाबा की जान ली थी। बिना सर वाली अंधेरी परछाइयां, जिनके चेहरे धुएं से बने हुए थे। वह इस बारे में सोच रहा था कि बिना चेहरे वाली परछाइयां, और कल मिली परछाइयां, दोनों ही परछाइयां एक जैसी नहीं थी। दोनों में काफी अंतर था। उसने हिना से पूछा “तुम्हारी अंधेरी परछाईयों को लेकर कितनी जानकारी है? तुम उनके बारे में कितना जानती हो? मैंने कल जिन अंधेरी परेशानियों को देखा था उनकी आंखें लाल थी, जबकि जिसने हम पर हमला किया था उनकी तो आंखें ही नहीं थी। उनके चेहरे पर बस काला धुआं तेर रहा था।”

    “उनके बारे में तो मैं सिर्फ उतना ही जानती हूं जितना यहां आश्रम में बताया गया है। मै इन दोनों ही परछाइयों के बारे में जानती हूं जिनकी तुम बात कर रहे हो। मैंने सुना है शैतानों के शहंशाह की काफी बड़ी सेना है, जिसमें अलग-अलग तरह की अंधेरी परछाइयां है। हर कोई दिखने में अलग है और हर एक के पास अलग-अलग तरह की ताकत है। बिना चेहरे वाली अंधेरी परछाइयों को हमलावर परछाइयां कहते हैं। यह अंधेरे कि सेना की एक टुकड़ी मात्र है। जबकि लाल आंखों वाली परछाइयों को गुप्त चर परछाईया कहते हैं। हमलावर परछाइयां दुनिया के अलग-अलग कोनों में हमारे लोगों पर हमला करती है। जबकि गुप्त चर परछाइयों का काम नजर रखने का है। मगर जरूरत पड़ने पर यह भी हमला करने से नहीं कतराती।”

    “तो इनका इतिहास क्या है? मतलब जैसे शैतानों के शहंशाह एक अलग ही दुनिया में है, तो यह सब यहां कैसे घूम रही हैं? यह क्यों नहीं अलग दुनिया में रहती?”

    “इसका कोई निर्धारित कारण नहीं। अंधेरी परछाइयां तो हमेशा से यही थीं। बस वह शैतानों के शहंशाह को कभी यहां नहीं ला पाई। उनकी हमेशा से यही कोशिश रही है कि शैतानों के शहंशाह को दुनिया पर ले आए। यहां आश्रम के पूर्वज, उन से लड़ते आ रहे हैं। पहले आश्रम की ताकत ज्यादा होती थी तो सुरक्षा चक्कर की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। मगर जैसे-जैसे लड़ाई लंबी चलती गई वैसे-वैसे आश्रम कमजोर पड़ता गया। फिर आखिरकार उन्होंने सुरक्षा चक्र बनाया और लड़ाई बंद कर दी। उसके बाद से बस वही हो रहा है जिसे तुम देख रहे हो। आश्रम दोबारा लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहा है।”

    “तो मतलब इनकी बस इतनी सी कहानी है। मगर बीच में भविष्यवाणी वाला कंसेप्ट भी तो है। मैंने अपने बाबा से कई बार सुना है, वह बार-बार इसका जिक्र करते थे। एक भविष्यवाणी जिसमें कहा गया है कि शैतानों के शहंशाह के आने के बाद कोई उसे मारेगा।”

    “इसके बारे में तो आश्रम ने भी सुन रखा है। लेकिन कोई भी इस पर यकीन नहीं करता। इसके भी कई कारण है। एक तो यहां आश्रम में किसी को भी नहीं पता कि भविष्यवाणी वाला शख्स कौन है जो उसे मारेगा। दूसरा उनका मानना है कि शैतान कभी आएगा ही नहीं। वह तो तब आएगा ना जब आश्रम की दोनों ही छड़ियां अंधेरी परछाइयों के हाथ लग जाएंगी।”

    “और उनकी रक्षा आश्रम कर ही रहा है।” आर्य अपनी जगह से खड़े होते हुए गहरी सांस लेकर बोला। “जब तक आश्रम की सुरक्षा काम करेगी तब तक अंधेरी परछाइयों को छड़ी नहीं मिलेगी। और वह अपने मकसद में कामयाब नहीं होंगे। लेकिन तुम्हें पता है ना वह हिम्मत नहीं हारने वाले। उनकी कोशिश जारी रहेगी।”

    हिना भी अपनी जगह से खड़ी हो गई। “जारी रहेगी...” वह आर्य की बात पर बोली “उनकी कोशिश हमेशा से ही जारी है। मैंने तुम्हें कल एक किले के बारे में बताया था ना, वहां ना जाने आश्रम के लोगों ने कितनी अंधेरी परछाइयों को कैद करके रखा है। वह सभी काली छड़ी को लेने ही यह आश्रम में आई थी।”

    आर्य ने अपने दाएं और देखा। हिना जिस किले की बात कर रही थी वह उसके दाएं और ही था। खंडहर जैसा दिखने वाला किला जिस में न जाने कितने अंधेरी परछाइयां केद थीं। आर्य ने कल भी उस किले को देखा था और वह आज भी उसे देख रहा था।

    उसने किले को देखते हुए हिना से कहा “क्या हम इसे पास जाकर देख सकते हैं। मैंने कल इसे देखा था मगर आज दोबारा देखने का मन कर रहा है”

    “हां क्यों नहीं,” हिना बोली “मगर हम दीवारों के आगे नहीं जा सकते। इसलिए लोहे के गेट के पास से ही देखना।”

    “हां, इसे लेकर बेफिक्र रहो। हम दीवार और मुख्य गेट से आगे नहीं जाएंगे।”

    हिना ने सहमति में सिर हिलाया और उसका हाथ पकड़ कर किले की तरफ जाने लगी। आर्य किले की ओर जाते वक्त उसे बड़े ही गौर से देख रहा था।

    ★★★

    ★★★

    आर्य और हिना दोनों ही किले की बाहरी दीवार के पास आ गए थे। आर्य किले को देखते वक्त उसमें खो सा गया था। हिना ने उसे झकझोरा और वह वर्तमान स्थिति में आया।

    “तुम पक्का कोई नशा नहीं करते ना। कल तुम दोपहर को सोने के बाद सीधे रात को उठे थे, और अब यहां मैं तुम्हें पिछले कुछ टाइम से आवाज लगा रही हूं और तुमने सुना ही नहीं।”

    आर्य ने अपने होश संभालते हुए कहा “मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया था। इसलिए तुम्हें जवाब नहीं दे पाया।” इसके बाद वह किले की तरफ देखने लगा।

    किले की दीवारें काले रंग से बनी हुई थी, बर्फबारी और सीलन की वजह से दीवारें जर्जर हालत में थी। उनकी नींव जहां पर ज्यादा नमी रहती थी वह काली होने के साथ-साथ हरे रंग की एक अजीब सी चीज से भी ग्रस्त थी। इसे सीलन की वजह से दीवारों पर लगने वाली बीमारी कहा जाता है। यह ज्यादातर दीवारों को कमजोर ही करती है वह भी जड़ से। आर्य ने अपने हाथों को आगे बढ़ाया और सलाखें पकड़ ली। सलाखें पकड़ते ही उसके शरीर में झुरझुरी सी दौड़ी।

    हिना बोली “हमारे आश्रम में यह किला पहले से ही था। पहले आश्रम के लोग यहां बाहर ना रहकर इस किले में रहते थे। मगर अंधेरी पंरछाइयों को कैद करने के लिए केद खाने की जरूरत थीं। और यहां आश्रम में इससे बढ़िया कोई भी कैदखाना नहीं था। आश्रम के लोग बाहर आ गए और अंधेरी परछाइयों को जादुई मंत्रों से इसके अंदर कैद कर दिया। बस उसके बाद यह किला हमेशा हमेशा के लिए आश्रम के लोगों के लिए एक देखने वाली चीज बन गया।”

    “तुमने कल कहा था यह खतरनाक है.... आश्रम के जादुई मंत्रों की वजह से भी... और अंदर की शैतानी आत्माओं वजह से भी....।”

    “पूरी तरह से खतरनाक। आश्रम के आचार्य वर्धन ने यहां एक ऐसे मंत्र का इस्तेमाल किया है जिसके बारे में पूरा आश्रम नहीं जानता। एक खतरनाक मंत्र जो सिर्फ और सिर्फ उन्हें ही आता है। उस मंत्र का कोई तोड़ नहीं है।”

    आर्य ने सलाखों को कस कर पकड़ा “अचार्य वर्धन यहां के सबसे ताकतवर आचार्य में से है?”

    “बिल्कुल।” हिना अपने कंधे उचकाते हुए बोली “उनके जादुई मंत्रों का कोई तोड़ नहीं, फिर वह ऐसी भी चीजें जानते हैं जिनके बारे में आश्रम में कोई और नहीं जानता। वो हजारों अंधेरी परछाइयों से अकेले लड़ने की क्षमता रखते हैं। उम्र दराज भी है और अनुभव भी काफी सारा है। इसी वजह से वह सबसे ताकतवर आचार्य है, और उनका ताकतवर होना स्वाभाविक भी है।”

    आर्य हिना की बात सुन रहा था मगर इसके बावजूद हिना की बात कटती हुई सुनाई दे रही थी। अचानक उसके पीछे से हवा का एक तेज झोंका आया, झोंका इतना तेज था कि आर्य और हिना दोनों को अंदर की ओर धक्का लगा। दोनों ही गेट को खोलते दीवार के दूसरी ओर जा चुके थे।

    दीवार के दूसरी ओर आते ही पीछे से आने वाली हवा और तेज हो गई। आर्य और हिना दोनों ने महसूस किया कि वह किले की ओर खींचे जा रहे हैं। हिना ने तुरंत अपनी आंखें बंद की और पूरे शरीर को नीली रोशनी से चमका लिया। इसके बाद उसने अपने ठीक सामने नीली रोशनी की दीवार बनाई और अपना एक पैर उस पर टिकाते हुए खुद को अंदर जाने से रोक लिया।

    मगर आर्य ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता था। वह हिना से दूर था, जब तक हिना दीवार बनाकर खुद को सुरक्षित करती तब तक वह और आगे जा चुका था।

    हिना ने आर्य की तरफ देखा तो वह चिल्लाई “अपना बचाव करो आर्य...।”

    बाहर से आने वाले हवा के धक्के उसे किले की और पास करते जा रहे थे। अभी तक वह खड़ा हुआ था, और गिरते पड़ते किले की ओर जा रहा था। मगर अचानक वह नीचे गिर गया। नीचे गिरते ही एक बार के लिए उसे गहरी सुध सी आई। उसने महसूस किया कि वह किसी बड़े ही खतरे में फसने जा रहा है। उसने हिना को भी कहते हुए सुना जो उसे अपना बचाव करने का कह रही थी। वही आर्य अपने होश खो रहा था।

    आर्य ने अपनी आंखों को बंद किया और सर को झटका देकर पूरी तरह से होश में आया। अपने होश संभालते ही उसने अपने दाएं हाथ की उंगलियों को जोर से जमीन में घुसा दिया। सतह बर्फीली थी तो उसका हाथ काफी गहराई तक चला गया। हवा धीरे-धीरे और तेज होती जा रही थी। अपना हाथ जमीन में गुढोने की वजह से आर्य किले की ओर जाने से तो रुक गया मगर उस पर पड़ने वाला दवाब अभी भी जारी था। दवाब पल प्रतिपल बढ़ता ही जा रहा था।

    तकरीबन कुछ समय और बीतने के बाद आर्य ने महसूस किया कि उसकी पकड़ छूटने जा रही है। उसका हाथ जमीन से निकलने को तैयार था। उसे ऐसा लग रहा था कि आज वह सिर्फ मुसीबत में ही नहीं फंस रहा, बल्की मौत के मुंह में भी जा रहा है। उसे अपने बचने की कोई भी उम्मीद दिखाई नहीं दे रही थी। वह पूरी तरह से अपनी उम्मीद हार चुका था, लेकिन तभी उसे एक सफेद चमकती हुई रोशनी दिखाई दी।

    वो सफेद चमकती हुई रोशनी लगातार उसकी ओर आ रही थी। रोशनी और करीब आई तो पता चला आश्रम के आचार्य, आचार्य वर्धन अपने साथ कुछ आचार्यों के साथ उसकी ओर ही आ रहे हैं। वह सफेद रोशनी जो उसे दिखाई दे रही थी वह अचार्य वर्धन के हाथ में मौजूद एक डंडे के ऊपरी सिरे से निकल रही थी।

    आचार्य वर्धन पास आए तो उन्होंने अपने डंडे को सामने की और कर दिया। ऐसा करते ही सफेद रोशनी और ज्यादा बढ़ने लगी। रोशनी के बढ़ते ही चलने वाले तेज हवाओं की गति कम होने लगी। धीरे धीरे बाकी की चीजें भी शांत हो रही थी। किले के सामने पैदा हुए हालात अब खत्म हो रहे थे।

    सब कुछ फिर से सामान्य हुआ तो हिना ने नीली रोशनी से चमक रहे अपने शरीर को वापस पहले जैसा कर लिया। वही कुछ अचार्य तेजी से आगे की तरफ बढ़े और आर्य को उठा कर जल्दी से किले से दूर की ओर जाने लगे। हिना भी आर्य के साथ-साथ उसके पीछे-पीछे किले से दूर चल पड़ी। सभी के किले से दूर जाने के बाद वहां सिर्फ और सिर्फ आचार्य वर्धन खड़े थे। वह किले की तरफ बड़े ही गौर से देख रहे थे। उनकी छड अभी भी किले की ओर थी। वह किले को ऐसे देख रहे थे जैसे मानो उनमें दीवारों के उस पार भी देखने की क्षमता थी।

    काफी देर तक किले को देखने के बाद वह बोले “यह आज पहली बार हुआ है। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। कहीं...” उनके शब्द अपने जगह पर रुक गए। कुछ देर के लिए वह कुछ नहीं बोले। इसके बाद उनके मुंह से निकला “कहीं... कब्र में दफन राज बाहर ना आ जाए। मुझे कुछ करना होगा।”

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2 Comments

Rohan Nanda

20-Dec-2021 10:51 PM

Good story

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रतन कुमार

18-Dec-2021 04:57 PM

😱😱😱😱😱😱😱 कितने राज़ दफ़न है भाई अभी तो लगता है बहुत से राज़ खुलने वाले हैं इस कहानी में

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